ब्रह्मास्त्र: पार्ट वन शिवा’ एक तरह से देखा जाए तो सनातन संस्कृतियों और परंपराओं से भागती युवा पीढ़ी को वापस उनकी धुरी की तरफ लाने की अच्छी कोशिश है। आमतौर पर जब फिल्मों में पैर छूने की प्रक्रिया घुटनों से नीचे खिसकने में हांफ जाती है, यहां कहानी का नायक कम से कम दो बार अपने वरिष्ठों के चरण बाकायदा पैर के अंगूठों तक जाकर छूता है।
मार्वल स्टूडियोज का सिनेमा कहें या हैरी पॉटर सीरीज व लॉर्ड ऑफ द रिंग्स सीरीज की फिल्में, इन सबके असर से बीते दो ढाई दशक में जवान हुई दर्शकों की ऐसी पूरी एक पीढ़ी तैयार हो चुकी है जिसने दादी, नानी से सुनी अपनी देसी कहानियों को ऐसे ही भव्य तरीके से परदे पर दिखाए जाने की हिंदी फिल्म निर्माताओं से आस लगा रखी है। ताज्जुब की बात ये है कि फिल्में बनाने की तकनीक के इतना उन्नत होने के बाद भी किसी हिंदी फिल्मकार का ध्यान अब तक इस तरफ गया ही नहीं। भारतीय दंतकथाओं में पौराणिक गाथाओं की तमाम कहानियां मुख्य कहानियों की क्षेपक कथाओं के रूप में आती है। ऐसी ही एक क्षेपक कथा सरीखी अयान मुखर्जी की 11 साल पहले सोची गई फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ तीन हिस्सों में बनना प्रस्तावित है। इस कहानी का पहला हिस्सा अयान ने फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र: पार्ट वन शिवा’ के रूप में बनाया है। इसकी अगली कड़ी फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र: पार्ट टू देवा’ की घोषणा भी फिल्म के क्लाइमेक्स में की है और जिस मोड़ पर आकर ये कहानी रुकती है, वहां इसके दूसरे भाग को देखने की दिलचस्पी दर्शकों में बनी रहती है।

ब्रह्मास्त्र की धुरी पर टिकी काल्पनिक कथा
हिंदू धर्म की पौराणिक गाथाओं में ब्रह्मास्त्र वह अस्त्र है जो चलाए जाने के बाद कभी चूकता नहीं है। यहां त्रेता युग की महागाथा कहती रामचरित मानस पढ़ने वालों को याद आएगा दोहा ‘ब्रह्म अस्त्र तेहि सांधा कपि मन कीन्ह विचार। जौ न ब्रह्म सर मानऊं महिमा मिटइ अपार।।’ फिर द्वापर में हुए महाभारत के युद्ध में भी इसका प्रयोग हुआ है। ये एक ऐसा अस्त्र है जो अचूक है। इसका प्रयोग बार बार हो सकता है। और, जब भी इसका प्रयोग होता है तो यह खाली नहीं लौटता। कुछ खुद इसके सामने नतमस्तक होकर पाश में बंध जाते हैं और कुछ को निशाने से हटाकर ब्रह्मास्त्र की दिशा भी बदल दी जाती है। अयान मुखर्जी का ‘ब्रह्मास्त्र’ फिल्मी है। इसकी कथा वर्तमान, अतीत और भविष्य में चलती है। कहानी का सिरा अयान सनातन काल से पकड़ते हैं और ब्रह्मास्त्र की उत्पत्ति से लेकर इसके रखवालों का गुप्त समुदाय बनाते हुए वर्तमान में वहां आते हैं, जहां धर्म और विज्ञान का मेल होता है वैज्ञानिक मोहन के रूप में। अमेरिका में ‘ब्रह्मास्त्र’ की उत्सुकता
‘ब्रह्मास्त्र: पार्ट वन शिवा’ मैंने यहां अमेरिका के लॉस एंजेलिस शहर के पास वाल्ट डिज्नी के बसाए पहले डिज्नीलैंड के कस्बे के रूप में मशहूर शहर अनाहाइम में देखी। अनाहाइम में दुनिया भर के पर्यटकों को मेला लगना शुरू हो चुका है। शुक्रवार से यहां डी23 एक्सपो शुरू होने वाला है। हर दो साल पर होने वाले इस जलसे में हजारों की तादाद में पर्यटक आते हैं। और, इस साल इसकी खासियत ये भी है कि इसी के साथ डिज्नी की स्थापना के 100वे साल की शुरुआत हो रही है। ‘ब्रह्मास्त्र: पार्ट वन शिवा’ भी डिज्नी की शाखा स्टार स्टूडियोज की ही फिल्म है। यह संयोग भी निराला ही है। डिज्नी की अंतर्राष्ट्रीय रिलीज की लिस्ट में शामिल रही ‘ब्रह्मास्त्र: पार्ट वन शिवा’ को अमेरिका में देखना एक अलग एहसास इसलिए भी रहा क्यों देखें कि न देखें
‘ब्रह्मास्त्र: पार्ट वन शिवा’ की कमजोर कड़ियां इसके संवाद के अलावा इसका संपादन भी है। फिल्म के शुरुआती हिस्से में रणबीर कपूर और उसके दोस्तों के बीच होने वाली बातचीत बहुत मुंबइया है। ऐसी हिंदी अब हिंदी भाषी दर्शकों को भी अच्छी नहीं लगती। फिल्म में शिवा की पृष्ठभूमि से फिल्म का भविष्य तय किया गया है लेकिन ईशा कौन है, उसका पृष्ठभूमि क्या है, इसके बारे में बस इतना पता चलता है कि वह अमीर है और उसका अमीर होना बनावटी नहीं है। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है लेकिन फिल्म का गीत संगीत फिल्म के कथ्य के हिसाब से काफी कमजोर है। फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र: पार्ट वन शिवा’ उन दर्शकों को खास पसंद आ सकती है जो मार्वल सिनेमैटिक यूनिवर्स जैसा कुछ हिंदी में देखने की ख्वाहिश अरसे से लिए रहे हैं। गड़बड़ियां इस फिल्म की वही हैं जो इन दिनों एमसीयू की फिल्मों में भी खूब दोहराई जा रही हैंकि यहां के सिनेमाघर में हिंदी सिनेमा के कुछ शौकीनों से भी मिलना हो गया।धेरे की रानी मोहन से कुछ रहस्य पता करती है और इनकी खोज के बीच से निकलती है शिवा और इशा की प्रेम कहानी।


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